जब मैं छोटा था,
शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी...
मुझे याद है मेरे घर से "स्कूल" तक का वो रास्ता,
क्या क्या नहीं था वहां,
छत के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले, सब कुछ,
अब वहां "मोबाइल शॉप", "विडियो पार्लर" हैं, फिर भी सब सूना है....
शायद अब दुनिया सिमट रही है......
जब मैं छोटा था,
शायद शामे बहुत लम्बी हुआ करती थी....
मैं हाथ में पतंग की डोर पकडे, घंटो उडा करता था,
वो लम्बी "साइकिल रेस", वो बचपन के खेल,
वो हर शाम थक के चूर हो जाना,
अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है..........
शायद वक्त सिमट रहा है........
जब मैं छोटा था,
शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुज़ोम बनाकर खेलना,
वो दोस्तों के घर का खाना, वो साथ रोना,
अब भी मेरे कई दोस्त हैं, पर दोस्ती जाने कहाँ है,
जब भी "ट्रेफिक सिग्नल" पे मिलते हैं "हाय" करते हैं,
और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं......
Thursday, September 2, 2010
Sunday, July 18, 2010
एक दास्ताँ ....
क्यूँ इस राह पर चल दिया था मै अकेला
यादों को उसकी अपना हमसफ़र बनाये
इस उम्मीद के तले की मंजिल मिलेगी कभी
पर काँटों और पत्थर के सिवाय कुछ ना मिला
फिर भी न रुकने का मैंने था ठाना
इस विश्वास के साथ की मुकाम तक पहुचुंगा कभी
एक आस थी मेरे अन्दर जो हर दर्द की दवा बनी
दिन निकले बरस निकले पर न निकला मेरा दम
फिर एक दिन मुझे एहसास हुआ
घूम रहा था मै उन्ही राहों में गोल
नींद खुली सपना टूटा और टूटा मेरा दिल
आज मै था अकेला, बिल्कुल अकेला
इस इंतज़ार के साथ कि
कोई तो थामे मेरा हाथ, कोई तो दे मेरा साथ
किसे दूँ दोष, किसे कहूँ अपना
जिस दिल पर भरोसा था, उसी ने दिया इतना दर्द
मोहब्बत ही तो मैंने कि थी, और किया था क्या गलत???
आज न कोई मेरे करीब है, न कोई हमदर्द
अब और न उसे चाहूँगा, ले लिया है मैंने फैसला
नहीं है वो मेरे नसीब में, न रखूँगा कोई हसरत
और न सुनूंगा इस ज़ालिम दिल कि
तू रहे खुश सदा, बस है यही मेरी दुआ......
यादों को उसकी अपना हमसफ़र बनाये
इस उम्मीद के तले की मंजिल मिलेगी कभी
पर काँटों और पत्थर के सिवाय कुछ ना मिला
फिर भी न रुकने का मैंने था ठाना
इस विश्वास के साथ की मुकाम तक पहुचुंगा कभी
एक आस थी मेरे अन्दर जो हर दर्द की दवा बनी
दिन निकले बरस निकले पर न निकला मेरा दम
फिर एक दिन मुझे एहसास हुआ
घूम रहा था मै उन्ही राहों में गोल
नींद खुली सपना टूटा और टूटा मेरा दिल
आज मै था अकेला, बिल्कुल अकेला
इस इंतज़ार के साथ कि
कोई तो थामे मेरा हाथ, कोई तो दे मेरा साथ
किसे दूँ दोष, किसे कहूँ अपना
जिस दिल पर भरोसा था, उसी ने दिया इतना दर्द
मोहब्बत ही तो मैंने कि थी, और किया था क्या गलत???
आज न कोई मेरे करीब है, न कोई हमदर्द
अब और न उसे चाहूँगा, ले लिया है मैंने फैसला
नहीं है वो मेरे नसीब में, न रखूँगा कोई हसरत
और न सुनूंगा इस ज़ालिम दिल कि
तू रहे खुश सदा, बस है यही मेरी दुआ......
Friday, July 16, 2010
Some Feelings....
There was a hope
In my heart
There were dreams
In my eyes
There was a desire
In my life
There was a wish
I wanted to come true
There was power
In my arms
There was prayer
Inside me
There was an answer
I was seeking
There were nights
I think of you
There was something
I feel for you
In my heart
There were dreams
In my eyes
There was a desire
In my life
There was a wish
I wanted to come true
There was power
In my arms
There was prayer
Inside me
There was an answer
I was seeking
There were nights
I think of you
There was something
I feel for you
Sunday, January 24, 2010
Poem I love a lot...
This is the first time I am posting something on my blog. It's a poem which really touches my heart and I would like to share it here. I heard it in a movie "Lage Raho Munnabhai" which many of you might have seen and would have heard this poem as well. So here it goes.
शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है?
शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है?
अगर यही जीना है दोस्तों तो फिर मरना क्या है?
पहली बारिश में ट्रेन लेट होने की फ़िक्र है
भूले भीगते हुए टहलना क्या है?
सीरियल के किरदारों का सारा हाल है मालूम
पर माँ का हाल पूछने की फुर्सत कहाँ है?
अब रेत पे नंगे पांव टहलते क्यों नहीं?
१०८ हैं चैनल पर दिल बहलते क्यों नहीं?
इन्टरनेट पे दुनिया के तोह टच में हैं,
लेकिन पड़ोस में कौन रहता है जानते तक नहीं.
मोबाइल, लैंड्लाइन सब की भरमार है,
लेकिन जिगरी दोस्त तक पहुंचे ऐसे तार कहाँ हैं?
कब डूबते हुए सूरज को देखा था याद है?
कब जाना था शाम का गुज़रना क्या है?
तोह दोस्तों शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है
अगर यही जीना है तो फिर मरना क्या है?
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