Sunday, January 24, 2010

Poem I love a lot...

This is the first time I am posting something on my blog. It's a poem which really touches my heart and I would like to share it here. I heard it in a movie "Lage Raho Munnabhai" which many of you might have seen and would have heard this poem as well. So here it goes.

शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है?

अगर यही जीना है दोस्तों तो फिर मरना क्या है?

पहली बारिश में ट्रेन लेट होने की फ़िक्र है

भूले भीगते हुए टहलना क्या है?

सीरियल के किरदारों का सारा हाल है मालूम

पर माँ का हाल पूछने की फुर्सत कहाँ है?

अब रेत पे नंगे पांव टहलते क्यों नहीं?

१०८ हैं चैनल पर दिल बहलते क्यों नहीं?

इन्टरनेट पे दुनिया के तोह टच में हैं,

लेकिन पड़ोस में कौन रहता है जानते तक नहीं.

मोबाइल, लैंड्लाइन सब की भरमार है,

लेकिन जिगरी दोस्त तक पहुंचे ऐसे तार कहाँ हैं?

कब डूबते हुए सूरज को देखा था याद है?

कब जाना था शाम का गुज़रना क्या है?

तोह दोस्तों शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है

अगर यही जीना है तो फिर मरना क्या है?